क्यों जा रहें हों ? क्या जरुरत हैं जाने की, कुछ समय की तो बात हैं ।


मैं प्रियांशु खण्डेलवाल (भवानीमण्ड़ी) लेकर आया आया हूँ आप सभी के सामने लाॅकडाउन में मजदूरों पर आपबीती की एक छोटी सी घटना:-

देश में लॉक डाउन को लगे 50 दिन से ज्यादा हो गए है और काम धंधे , फेक्ट्रिया सब के सब बंद है । एसी विकट परिस्थति में सब से ज्यादा परेशानी उन मजदूरों की हुई जो अपने घरो से दूर बड़े बड़े शहरों में किराये की खोली लेकर ठेकेदारों और सेठो के भरोसे पड़े हुए थे । एक 10 बाय 10 की छोटी सी  खोली में कम से कम 5 लोग या उससे भी ज्यादा रुकते थे , कोई बेलदार तो कोई प्लंबर तो कोई छोटी मोटी मजदूरी कर पैसा जमा करता और गाँव में बैठे अपने बीवी बच्चो और माँ बाप को भेजता था. घर खर्च , बच्चो की फीस , मकान किराये और माँ बाप की दवाई गोली के लिए , मतलब इन मजदूरों के पास बचत नाम की कोई चीज नहीं होती है थोडा कमाते , थोडा  खाते और थोडा घर भेज देते ।



हमारे भवानीमण्डी़ शहर का अन्नक्षेत्र सेवा संस्थान, नगरपालिका और व्यापार महासंघ के कुछ लोग कई दिनों से बायपास से गुजर रहें मजदूरों को जन सहयोग से भोजन और पानी की व्यवस्था कर रहे थे, और इस दोरान उन्होनें खुद कई मजदूरों से बात करी की क्यों जा रहे हो ? थोड़े दिन की तो बात है फिर सब कुछ ठीक हो जायेगा। और वहां जा कर भी तुम लोगो को क्या मिलेगा? सरकार भी यही कह रही है की जो जहाँ है वही रहे, इस पर मजदूरों ने जो अपना पक्ष रखा उसे सुनकर उन्हें लगा की ये लोग भी गलत नहीं है ।

1:- 24 मार्च से लॉक डाउन शुरू होते ही परेशानियाँ बढ गयी, खाने पीने की दुकाने बंद होने लगी और मजदूरों के पास राशन का कोई स्टॉक नहीं था,  राज्य सरकारों ने भी खाने-पीने की व्यवस्था देर से शुरू की ऐसे में जिसको जेसी जुगाड़ मिली उसने वहां से व्यवस्था करी,  थोड़े दिन खाने की व्यवस्था ठेकेदारों और सेठों ने कर दी.

2:- मार्च के बचे कुछ दिन तो ठेकदारों के भरोसे काट लिए लेकिन अप्रैल आते ही मकान मालिकों ने खोली का किराया माँगना शुरू कर दिया और नहीं देने पर खोली खाली करने की धमकी दी, अब ठेकेदारों के पैसे भी खत्म हो गए साथ ही सेठों ने भी अपने हाथ ऊँचे कर दिए, ऐसे में मजदूरों को अपनी अपनी खोलियाँ खाली करनी पडी ।

3:- अब न तो जेब में पैसे, न रहने के लिए जगह और ना ही खाने-पीने की समुचित व्यवस्था ऊपर से बीमार होने का खतरा अलग, इतना ही नहीं वहां गाँव में बीवी, बच्चों और माँ बाप की क्या हालत होगी वो चिंता अलग साथ ही यह लॉकडाउन कितना लंबा चलेगा यह भी नहीं पता, अब बताइए इस परिस्थिति में तो अच्छे अच्छे लोग विचलित हो जाते तो इन बेचारो ने अपने घर की तरफ जो रुख किया क्या वो  गलत हैं ?


हम और आप अपने घरो में बैठ कर ठंडे ए.सी. और कूलर की हवा खाते हुए कुछ व्हाट्सअप और फेसबुक के पोस्ट पढ़ के अगर अर्थव्यवस्था का ज्ञान पेलते हुए यह कहे की मजदूरो ने बेवकूफी करी, उनको वही रहना था, आगे फेक्ट्रियों को चालू करने में दिक्कत आएगी तो आप एक बार अपने आप को उन परिस्थितयों के बीच रख कर सोचियेगा जिनसे ये मजदूर गुजर रहे हैं तो आपको खुद अपने सवाल का जवाब मिल जायेगा ।

Written By:- Priyanshu Khandelwal

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